Ghazals of Saleem Ahmed (page 2)

Ghazals of Saleem Ahmed (page 2)
नामसलीम अहमद
अंग्रेज़ी नामSaleem Ahmed
जन्म की तारीख1927
मौत की तिथि1983
जन्म स्थानKarachi

किन नक़ाबों में है मस्तूर वो हुस्न-ए-मा'सूम

ख़ुद अपनी लौ में था मेहराब-ए-जाँ में जलता था

ख़ैर का तुझ को यक़ीं है और उस को शर का है

कल नशात-ए-क़ुर्ब से मौसम बहार-अंदाज़ा था

जो दिल में हैं दाग़ जल रहे हैं

जो बात दिल में थी वो कब ज़बान पर आई

जो आँखों के तक़ाज़े हैं वो नज़्ज़ारे बनाता हूँ

जिस का इंकार भी इंकार न समझा जाए

जाने किसी ने क्या कहा तेज़ हवा के शोर में

जा के फिर लौट जो आए वो ज़माना कैसा

इश्क़ में जिस के ये अहवाल बना रक्खा है

इश्क़ और नंग-ए-आरज़ू से आर

इश्क़ और इतना मोहज़्ज़ब छोड़ कर दीवाना-पन

इस आँख में ख़्वाब-ए-नाज़ हो जा

हम हैं और राह-ए-कू-ए-बदनामी

हर आँख का हासिल दूरी है

एक ख़ुश्बू दिल-ओ-जाँ से आई

दुख दे या रुस्वाई दे

दिलों में दर्द भरता आँख में गौहर बनाता हूँ

दिल के अंदर दर्द आँखों में नमी बन जाइए

दिल हुस्न को दान दे रहा हूँ

दीदनी है हमारी ज़ेबाई

देखने के लिए इक शर्त है मंज़र होना

बज़्म आख़िर हुई शम्ओं' का धुआँ बाक़ी है

बन के दुनिया का तमाशा मो'तबर हो जाएँगे

बजा ये रौनक़-ए-महफ़िल मगर कहाँ हैं वो लोग

बैठे हैं सुनहरी कश्ती में और सामने नीला पानी है

अहल-ए-दिल ने इश्क़ में चाहा था जैसा हो गया

आज तो नहीं मिलता ओर-छोर दरिया का

आँखों में सितारे से चमकते रहे ता-देर

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