बिछड़ Poetry (page 6)

किस को सुनाऊँ हाल-ए-ग़म कोई ग़म-आश्ना नहीं

फ़ना बुलंदशहरी

मेजर-इसहाक़ की याद में

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

बैठा है मेरे सामने वो

फ़हमीदा रियाज़

मुहाजिर

एजाज़ अहमद एजाज़

क्या चाहा था क्या सोचा था क्या गुज़री क्या बात हुई

देवमणि पांडेय

इक क़तरे को दरिया समझा मैं भी कैसा पागल हूँ

देवमणि पांडेय

कैसा वो मौसम था ये तो समझ न पाए हम

चंद्र प्रकाश शाद

होती नहीं रसाई-ए-बर्क़-ए-तपाँ कहाँ

ब्रहमा नन्द जलीस

कितना अजीब शब का ये मंज़र लगा मुझे

बिस्मिल आग़ाई

नज़र की फ़त्ह कभी क़ल्ब की शिकस्त लगे

बेकल उत्साही

मुझ से बिछड़ के ख़ुश रहते हो

बशीर बद्र

क्या बिछड़ कर रह गया जाने भरी बरसात में

बशीर मुंज़िर

होगा क्या चाँद-नगर सोचते हैं

बशीर मुंज़िर

मुझ से बिछड़ के वो भी परेशान था बहुत

बाक़ी अहमदपुरी

औरों पे इत्तिफ़ाक़ से सब्क़त मिली मुझे

बाक़र मेहदी

अब ख़ानुमाँ-ख़राब की मंज़िल यहाँ नहीं

बाक़र मेहदी

सब्र-ओ-ज़ब्त की जानाँ दास्ताँ तो मैं भी हूँ दास्ताँ तो तुम भी हो

बक़ा बलूच

कल सामने मंज़िल थी पीछे मिरी आवाज़ें

अज़्म बहज़ाद

मैं ने चुप के अंधेरे में ख़ुद को रखा इक फ़ज़ा के लिए

अज़्म बहज़ाद

मैं उम्र के रस्ते में चुप-चाप बिखर जाता

अज़्म बहज़ाद

लम्हों ने यूँ समेट लिया फ़ासला बहुत

अज़ीज़ुर्रहमान शहीद फ़तेहपुरी

कैसे मुमकिन है कि हम दोनों बिछड़ जाएँगे

अज़ीज़ वारसी

इतने नज़दीक से आईने को देखा न करो

अज़ीज़ वारसी

बढ़ने दे अभी कशमकश-ए-तार-ए-नफ़स और

अज़ीज़ तमन्नाई

शहर गुम-सुम रास्ते सुनसान घर ख़ामोश हैं

अज़हर नक़वी

दिल कुछ देर मचलता है फिर यादों में यूँ खो जाता है

अज़हर नक़वी

ये क्या कि रंग हाथों से अपने छुड़ाएँ हम

अज़हर इनायती

हँसने-हँसाने पढ़ने-पढ़ाने की उम्र है

अज़हर फ़राग़

सुब्ह कैसी है वहाँ शाम की रंगत क्या है

अज़हर अदीब

ये और बात है कि मदावा-ए-ग़म न था

अज़ीम मुर्तज़ा

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