मूर्ति Poetry (page 5)

ज़ि-बस काफ़िर-अदायों ने चलाए संग-ए-बे-रहमी

सिराज औरंगाबादी

बुत-परस्तों कूँ है ईमान-ए-हक़ीक़ी वस्ल-ए-बुत

सिराज औरंगाबादी

ख़ूब बूझा हूँ मैं उस यार कूँ कुइ क्या जाने

सिराज औरंगाबादी

हम हैं मुश्ताक़-ए-जवाब और तुम हो उल्फ़त सीं बईद

सिराज औरंगाबादी

अगर कुछ होश हम रखते तो मस्ताने हुए होते

सिराज औरंगाबादी

वही रंग-ए-रुख़ पे मलाल था ये पता न था

सिद्दीक़ मुजीबी

आग देखूँ कभी जलता हुआ बिस्तर देखूँ

सिद्दीक़ मुजीबी

बुल-हवस में भी न था वो बुत भी हरजाई न था

सिद्दीक़ अफ़ग़ानी

अबस है दूरी का उस के शिकवा बग़ल में अपने वो दिल-रुबा है

श्याम सुंदर लाल बर्क़

शुक्र को शिकवा-ए-जफ़ा समझे

शोला अलीगढ़ी

मैं जब्हा सा हूँ उस दर-ए-आली-मक़ाम का

शोला अलीगढ़ी

ऐ हज़रत-ए-ईसा नहीं कुछ जा-ए-सुख़न अब

शोला अलीगढ़ी

साक़ी-ए-दौराँ कहाँ वो तेरे मय-ख़ाने गए

शिव चरन दास गोयल ज़ब्त

कसरत-ए-वहदानियत में हुस्न की तनवीर देख

शेर सिंह नाज़ देहलवी

सितम को हम करम समझे जफ़ा को हम वफ़ा समझे

ज़ौक़

शुक्र पर्दे ही में उस बुत को हया ने रक्खा

ज़ौक़

एक पत्थर पूजने को शैख़ जी काबे गए

ज़ौक़

उस संग-ए-आस्ताँ पे जबीन-ए-नियाज़ है

ज़ौक़

निगह का वार था दिल पर फड़कने जान लगी

ज़ौक़

न खींचो आशिक़-तिश्ना-जिगर के तीर पहलू से

ज़ौक़

मरज़-ए-इश्क़ जिसे हो उसे क्या याद रहे

ज़ौक़

क्या ग़रज़ लाख ख़ुदाई में हों दौलत वाले

ज़ौक़

जुदा हों यार से हम और न हो रक़ीब जुदा

ज़ौक़

दूद-ए-दिल से है ये तारीकी मिरे ग़म-ख़ाना में

ज़ौक़

आँख उस पुर-जफ़ा से लड़ती है

ज़ौक़

दख़्ल हर दिल में तिरा मिस्ल-ए-सुवैदा हो गया

शैख़ अली बख़्श बीमार

कौन से दिन तिरी याद ऐ बुत-ए-सफ़्फ़ाक नहीं

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

संग-आबाद की एक दुकाँ

शाज़ तमकनत

अजनबी

शाज़ तमकनत

यही सफ़र की तमन्ना यही थकन की पुकार

शाज़ तमकनत

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