मूर्ति Poetry (page 6)

शब ओ रोज़ जैसे ठहर गए कोई नाज़ है न नियाज़ है

शाज़ तमकनत

भागे अच्छी शक्लों वाले इश्क़ है गोया काम बुरा

शौक़ क़िदवाई

ज़ाहिरन ये बुत तो हैं नाज़ुक गुल-ए-तर की तरह

शौक़ बहराइची

मंज़िल है कठिन कम ज़ाद-ए-सफ़र मालूम नहीं क्या होना है

शौक़ बहराइची

गुर बुत-ए-कम-सिन दाम बिछाए

शौक़ बहराइची

आँसू मिरी आँखों से टपक जाए तो क्या हो

शौक़ बहराइची

हो राहज़न की हिदायत कि राहबर के फ़रेब

शौकत थानवी

ज़मीं पे रह के दिमाग़ आसमाँ से मिलता है

शमीम जयपुरी

कई रातों से बस इक शोर सा कुछ सर में रहता है

शमीम हनफ़ी

अब क़ैस है कोई न कोई आबला-पा है

शमीम हनफ़ी

कभी मय-कदा कभी बुत-कदा कभी काबा तो कभी ख़ानक़ाह

शमीम अब्बास

ज़ियाँ गर कुछ हुआ तो उतना जितना सूद होता है

शमीम अब्बास

बड़ी सर्द रात थी कल मगर बड़ी आँच थी बड़ा ताव था

शमीम अब्बास

तन्हाई का ग़म ढोएँ और रो रो जी हलकान करें

शाकिर ख़लीक़

इस बुत-कदे में तू जो हसीं-तर लगा मुझे

शकेब जलाली

आज लगता है समुंदर में है तुग़्यानी सी

शाइस्ता मुफ़्ती

मैं कुफ़्र ओ दीं से गुज़र कर हुआ हूँ ला-मज़हब

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

कभू जो शैख़ दिखाऊँ मैं अपने बुत के तईं

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

न मोहतसिब से ये मुझ को ग़रज़ न मस्त से काम

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

न बुलबुल में न परवाने में देखा

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

कौन दिल है कि तिरे दर्द में बीमार नहीं

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

कहीं वो सूरत-ए-ख़ूबाँ हुआ है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

ख़ुद ही तस्वीर बनाता हूँ मिटा देता हूँ

शहज़ाद अहमद

हिज्र की रात मिरी जाँ पे बनी हो जैसे

शहज़ाद अहमद

मा'बद-ए-ज़ीस्त में बुत की मिसाल जड़े होंगे

शहरयार

आँखों में है पर आँख ने देखा नहीं अभी

शाहिद शैदाई

बुझे बुझे से चराग़ों से सिलसिला पाया

शाहिद माहुली

लहू का दाग़ न था ज़ख़्म का निशान न था

शाहिद कलीम

लगाई किस बुत-ए-मय-नोश ने है ताक उस पर

शाह नसीर

काबे से ग़रज़ उस को न बुत-ख़ाने से मतलब

शाह नसीर

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