धुआं Poetry (page 14)

सूरत-ए-ज़ंजीर मौज-ए-ख़ूँ में इक आहंग है

अज़ीज़ हामिद मदनी

निसार यूँ तो हुआ तुझ पे नक़्द-ए-जाँ क्या क्या

अज़ीज़ हामिद मदनी

चराग़ बन के जली थी मैं जिस की महफ़िल में

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

थकन से चूर हूँ लेकिन रवाँ-दवाँ हूँ मैं

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

कभी गोकुल कभी राधा कभी मोहन बन के

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

सुबूत बर्क़ की ग़ारत-गरी का किस से मिले

अज़हर सईद

हलाकत-ए-दिल-ए-नाशाद राएगाँ भी नहीं

अज़हर सईद

इस बुलंदी पे कहाँ थे पहले

अज़हर इनायती

शहर को आतिश-ए-रंजिश के धुआँ तक देखूँ

अज़हर हाश्मी

कोई सिलसिला नहीं जावेदाँ तिरे साथ भी तिरे बा'द भी

अज़हर फ़राग़

किस ने कहा कि चुप हूँ मियाँ बोलता नहीं

अज़हर अब्बास

हवा-ए-तेज़ के आगे कहाँ रहेगा कोई

अज़हर अब्बास

यक़ीं बनाता है कोई गुमाँ बनाता है

आज़र तमन्ना

डराने वाला सुन कर डर रहा है

आयुष चराग़

हवस ने मुझ से पूछा था तुम्हारा क्या इरादा है

औरंगज़ेब

तीरगी शम्अ बनी राहगुज़र में आई

अता आबिदी

एक जिला-वतन की वापसी

असरार-उल-हक़ मजाज़

बर्बत-ए-शिकस्ता

असरार-उल-हक़ मजाज़

ये जहाँ बारगह-ए-रित्ल-ए-गिराँ है साक़ी

असरार-उल-हक़ मजाज़

दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता-ए-जफ़ा पे कहीं

असरार-उल-हक़ मजाज़

जल रहा हूँ तो अजब रंग ओ समाँ है मेरा

असलम महमूद

ऐ मिरे ग़ुबार-ए-सर तू ही तो नहीं तन्हा राएगाँ तो मैं भी हूँ

असलम महमूद

हमारी याद उन्हें आ गई तो क्या होगा

असलम आज़ाद

मुक़ावमत

आसिफ़ रज़ा

एक सर्द जंग है अब मोहब्बतें कहाँ

अासिफ़ जमाल

सर्द-मेहरी से तिरी दिल जो तपाँ रखते हैं

अश्क रामपुरी

इंकिशाफ़-ए-ज़ात के आगे धुआँ है और बस

अशअर नजमी

शहर तो कब का जल चुका 'असग़र'

असग़र शमीम

चैन मुझ को मिला कहाँ अब तक

असग़र शमीम

बे-निशान क़दमों की कहकशाँ पकड़ते हैं

असग़र मेहदी होश

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