शोक Poetry (page 147)

मंज़िलें न भूलेंगे राह-रौ भटकने से

अदीब सहारनपुरी

क्यूँ

अदा जाफ़री

ज़बाँ को हुक्म निगाह-ए-करम को पहचाने

अदा जाफ़री

न बाम-ओ-दश्त न दरिया न कोहसार मिले

अदा जाफ़री

मिज़ाज-ओ-मर्तबा-ए-चश्म-ए-नम को पहचाने

अदा जाफ़री

जब दिल की रहगुज़र पे तिरा नक़्श-ए-पा न था

अदा जाफ़री

होंटों पे कभी उन के मिरा नाम ही आए

अदा जाफ़री

बेगानगी-ए-तर्ज़-ए-सितम भी बहाना-साज़

अदा जाफ़री

आगे हरीम-ए-ग़म से कोई रास्ता न था

अदा जाफ़री

तज्दीद-ए-रिवायात-ए-कुहन करते रहेंगे

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद

गिला किस से करें अग़्यार-ए-दिल-आज़ार कितने हैं

अबुल मुजाहिद ज़ाहिद

ये इक और हम ने क़रीना किया

अबुल हसनात हक़्क़ी

ये इक और हम ने क़रीना किया

अबुल हसनात हक़्क़ी

ज़ब्त कर आह बार बार न कर

अबू ज़ाहिद सय्यद यहया हुसैनी क़द्र

कोह-ए-ग़म से क्या ग़रज़ फ़िक्र-ए-बुताँ से क्या ग़रज़

अबू ज़ाहिद सय्यद यहया हुसैनी क़द्र

ये बंदगी का सदा अब समाँ रहे न रहे

अबु मोहम्मद वासिल

तसव्वुरात में इन को बुला के देख लिया

अबु मोहम्मद वासिल

मसरूर हो रहे हैं ग़म-ए-आशिक़ी से हम

अबु मोहम्मद वासिल

जबीन-ए-शौक़ पर कोई हुआ है मेहरबाँ शायद

अबु मोहम्मद वासिल

हसरत-ए-दीद रही दीद का ख़्वाहाँ हो कर

अबु मोहम्मद वासिल

अगर मेरी जबीन-ए-शौक़ वक़्फ़-ए-बंदगी होती

अबु मोहम्मद वासिल

आगे वो जा भी चुके लुत्फ़-ए-नज़ारा भी गया

अबु मोहम्मद वासिल

तकमील-ए-आरज़ू से भी होता है ग़म कभी

अबु मोहम्मद सहर

हिन्दू से पूछिए न मुसलमाँ से पूछिए

अबु मोहम्मद सहर

ग़म-ए-हबीब नहीं कुछ ग़म-ए-जहाँ से अलग

अबु मोहम्मद सहर

बर्क़ से खेलने तूफ़ान पे हँसने वाले

अबु मोहम्मद सहर

ज़िंदगी ख़ाक-बसर शोला-ब-जाँ आज भी है

अबु मोहम्मद सहर

वक़्त ग़मनाक सवालों में न बर्बाद करें

अबु मोहम्मद सहर

सब इक न इक सराब के चक्कर में रह गए

अबु मोहम्मद सहर

ख़्वाबों का नश्शा है न तमन्ना का सिलसिला

अबु मोहम्मद सहर

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