जाम Poetry (page 5)

उन की देरीना मुलाक़ात जो याद आती है

सय्यद मुबीन अल्वी ख़ैराबादी

कुछ इस तरह ग़म-ए-उल्फ़त की काएनात लुटी

सय्यद मोहम्मद ज़फ़र अशक संभली

दौर-ए-मय है मगर सुरूर नहीं

सय्यद मोहम्मद ज़फ़र अशक संभली

ब-हर-सूरत मोहब्बत का यही अंजाम देखा है

सय्यद मोहम्मद ज़फ़र अशक संभली

मैं नशे में हूँ

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

बाँहों में यार हो, कोई फ़ुर्सत की शाम हो

सय्यद काशिफ़ रज़ा

आँखों को चमक चेहरे को इक आब तो दीजे

सय्यद फ़ज़लुल मतीन

ज़ीस्त में कोशिश-ए-नाकाम से पहले पहले

सय्यद आरिफ़ अली

तीर पे तीर निशानों पे निशाने बदले

सय्यद आरिफ़ अली

गर्दिश-ए-जाम नहीं रुक सकती

सय्यद आबिद अली आबिद

वो लौट आई है ऑफ़िस से हिज्र ख़त्म हुआ

स्वप्निल तिवारी

गंगा जी

सुरूर जहानाबादी

किसी मस्त-ए-ख़्वाब का है अबस इंतिज़ार सो जा

सुरूर जहानाबादी

तस्कीन-ए-अना

सुलैमान अरीब

प्यार का दर्द का मज़हब नहीं होता कोई

सुलैमान अरीब

हिसाब-ए-उम्र करो या हिसाब-ए-जाम करो

सुलैमान अरीब

ग़म-कदे वो जो तिरे गाम से जल उठते हैं

सुलैमान अरीब

क्या हुआ जो सितारे चमकते नहीं दाग़ दिल के फ़रोज़ाँ करो दोस्तो

सूफ़ी तबस्सुम

ख़ामोशी कलाम हो गई है

सूफ़ी तबस्सुम

काविश-ए-बेश-ओ-कम की बात न कर

सूफ़ी तबस्सुम

जान दे कर वफ़ा में नाम किया

सूफ़ी तबस्सुम

हज़ार गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर से गुज़रे हैं

सूफ़ी तबस्सुम

याद आती है तिरी यूँ मिरे ग़म-ख़ाने में

सुदर्शन कुमार वुग्गल

तिरी ज़ुल्फ़ के पेच-ओ-ख़म देखते हैं

सुदर्शन कुमार वुग्गल

साग़र उठा के ज़ोहद को रद हम ने कर दिया

सिराजुद्दीन ज़फ़र

मौसम-ए-गुल तिरे इनआ'म अभी बाक़ी हैं

सिराजुद्दीन ज़फ़र

ग़ुस्ल-ए-तौबा के लिए भी नहीं मिलती है शराब

सिराज लखनवी

यूँ सुबुक-दोश हूँ जीने का भी इल्ज़ाम नहीं

सिराज लखनवी

वो ज़कात-ए-दौलत-ए-सब्र भी मिरे चंद अश्कों के नाम से

सिराज लखनवी

न कुरेदूँ इश्क़ के राज़ को मुझे एहतियात-ए-कलाम है

सिराज लखनवी

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