उम्र Poetry (page 62)

क्यूँ हमारे साँस भी होते हैं लोगों पर गिराँ

अहमद हमदानी

ये वफ़ाएँ सारी धोके फिर ये धोके भी कहाँ

अहमद हमदानी

याद क्या क्या लोग दश्त-ए-बे-कराँ में आए थे

अहमद हमदानी

मुज़्तरिब हैं वक़्त के ज़र्रात सूरज से कहो

अहमद हमदानी

दिलों को रंज ये कैसा है ये ख़ुशी क्या है

अहमद हमदानी

दिन से बिछड़ी हुई बारात लिए फिरती है

अहमद फ़रीद

तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है

अहमद फ़राज़

सामने उम्र पड़ी है शब-ए-तन्हाई की

अहमद फ़राज़

रात क्या सोए कि बाक़ी उम्र की नींद उड़ गई

अहमद फ़राज़

मुझ से बिछड़ के तू भी तो रोएगा उम्र भर

अहमद फ़राज़

कुछ इस तरह से गुज़ारी है ज़िंदगी जैसे

अहमद फ़राज़

कितने नादाँ हैं तिरे भूलने वाले कि तुझे

अहमद फ़राज़

कितना आसाँ था तिरे हिज्र में मरना जानाँ

अहमद फ़राज़

किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल

अहमद फ़राज़

ब-ज़ाहिर एक ही शब है फ़िराक़-ए-यार मगर

अहमद फ़राज़

ज़ेर-ए-लब

अहमद फ़राज़

मुहासरा

अहमद फ़राज़

भली सी एक शक्ल थी

अहमद फ़राज़

ऐ मेरे वतन के ख़ुश-नवाओ

अहमद फ़राज़

ये मैं भी क्या हूँ उसे भूल कर उसी का रहा

अहमद फ़राज़

ये क्या कि सब से बयाँ दिल की हालतें करनी

अहमद फ़राज़

वहशतें बढ़ती गईं हिज्र के आज़ार के साथ

अहमद फ़राज़

तेरे क़रीब आ के बड़ी उलझनों में हूँ

अहमद फ़राज़

सुकूत-ए-शाम-ए-ख़िज़ाँ है क़रीब आ जाओ

अहमद फ़राज़

सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते जाते

अहमद फ़राज़

साक़िया एक नज़र जाम से पहले पहले

अहमद फ़राज़

रोग ऐसे भी ग़म-ए-यार से लग जाते हैं

अहमद फ़राज़

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ

अहमद फ़राज़

पयाम आए हैं उस यार-ए-बेवफ़ा के मुझे

अहमद फ़राज़

मुंतज़िर कब से तहय्युर है तिरी तक़रीर का

अहमद फ़राज़

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