क्यूँ हमारे साँस भी होते हैं लोगों पर गिराँ
हम भी तो इक उम्र ले कर इस जहाँ में आए थे
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Rahat Indori
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Gulzar
Habib Jalib
Javed Akhtar
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दिल तुझे पा के भी तन्हा होता
मुज़्तरिब हैं वक़्त के ज़र्रात सूरज से कहो
मुँह अँधेरे घर से निकले फिर थे हंगामे बहुत
अब ये होगा शायद अपनी आग में ख़ुद जल जाएँगे
अजीब वहशतें हिस्से में अपने आई हैं
ये वफ़ाएँ सारी धोके फिर ये धोके भी कहाँ
तू मयस्सर था तो दिल में थे हज़ारों अरमाँ
नित-नए रंग से करता रहा दिल को पामाल
दिलों को रंज ये कैसा है ये ख़ुशी क्या है
कुछ उस को याद करूँ उस का इंतिज़ार करूँ
ये तेरी चाह भी क्या तेरी आरज़ू भी क्या