तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है
ये जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो
Jaun Eliya
Habib Jalib
Gulzar
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Rahat Indori
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(3805) Peoples Rate This
ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते
ये आलम शौक़ का देखा न जाए
सारा शहर बिलकता है
जो ग़ैर थे वो इसी बात पर हमारे हुए
क़ुर्ब-ए-जानाँ का न मय-ख़ाने का मौसम आया
ज़ेर-ए-लब
सू-ए-फ़लक न जानिब-ए-महताब देखना
चले थे यार बड़े ज़ोम में हवा की तरह
ख़ुद को तिरे मेआर से घट कर नहीं देखा
तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चराग़
कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो
दिल भी पागल है कि उस शख़्स से वाबस्ता है