साथ Poetry (page 94)

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अबरार अहमद

इस ए'तिबार पे काटी है हम ने उम्र-ए-अज़ीज़

आबिद वदूद

कफ़-ए-ख़िज़ाँ पे खिला मैं इस ए'तिबार के साथ

आबिद सयाल

कहीं से बास नए मौसमों की लाती हुई

आबिद सयाल

कहीं से बास नए मौसमों की लाती हुई

आबिद सयाल

कफ़-ए-ख़िज़ाँ पे खिला मैं इस ए'तिबार के साथ

आबिद सयाल

ज़ख़्म और पेड़ ने इक साथ दुआ माँगी है

आबिद मलिक

शहर से जब भी कोई शहर जुदा होता है

आबिद मलिक

इक अजनबी की तरह है ये ज़िंदगी मिरे साथ

आबिद मलिक

श्याम गोकुल न जाना कि राधा का जी अब न बंसी की तानों पे लहराएगा

आबिद हशरी

रात

आबिद आलमी

जो कहते हैं किधर दीवानगी है

आबिद अख़्तर

कभी कभी तो ये वहशत भी हम पे गुज़री है

अभिषेक शुक्ला

हम ऐसे सोए भी कब थे हमें जगा लाते

अभिषेक शुक्ला

अभी तो आप ही हाइल है रास्ता शब का

अभिषेक शुक्ला

जिस्म के मर्तबान में क्या है

अब्दुस्समद ’तपिश’

हक़ मिरा मुझ को मिरे यार नहीं देते हैं

अब्दुश्शुकूर आसी

ये मत समझ कि तिरे साथ कुछ नहीं करेगा

अब्दुर्राहमान वासिफ़

मेज़ क़लम क़िर्तास दरीचा सन्नाटा

अब्दुर्राहमान वासिफ़

चुप

अब्दुर्रशीद

कभी प्यारा कोई मंज़र लगेगा

अब्दुल्लाह जावेद

इक सैल-ए-बे-पनाह की सूरत रवाँ है वक़्त

अब्दुल्लाह जावेद

चमका जो चाँद रात का चेहरा निखर गया

अब्दुल्लाह जावेद

ख़ुश-क़दाँ जब ख़िराम करते हैं

अब्दुल वहाब यकरू

ये सानेहा भी हो गया है रस्ते में

अब्दुल वहाब सुख़न

मुझे एहसास ये पल पल रहा है

अब्दुल वहाब सुख़न

करते नहीं जफ़ा भी वो तर्क-ए-वफ़ा के साथ

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

सितम सा कोई सितम है तिरा पनाह तिरी

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

पूछी न ख़बर कभी हमारी

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

नीम-चा जल्द म्याँ ही न मियाँ कीजिएगा

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

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