मैं उस के जाल में आऊँगा देखना 'क़ैसर'
वो मुझ को धोके से घर में बुला के मारेगा
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Habib Jalib
Gulzar
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(991) Peoples Rate This
सुब्ह तक बे-तलब मैं जागूँगा
झुलसती धूप में मुझ को जला के मारेगा
ये नफ़सियाती मरीज़ों का शहर है 'क़ैसर'
कहीं से आया तुम्हारा ख़याल वैसे ही
शिकस्ता ख़्वाब मिरे आईने में रक्खे हैं
तिरी तस्वीर उठाई हुई है
तिरा जवाब मिरे काम का नहीं है अब
नज़र नज़र से मिलाओगे मारे जाओगे