रह जाएगी ये सारी कहानी यहीं धरी
इक रोज़ जब मैं अपने फ़साने में जाऊँगा
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ये गुल जिस ख़ाक से लाया गया है
ऐसा एक मक़ाम हो जिस में दिल जैसी वीरानी हो
अब भी अक्सर ध्यान तुम्हारा आता है
ख़्वाब आराम नहीं ख़्वाब परेशानी है
उस ख़ुश-अदा के आइना-ख़ाने में जाऊँगा
तिरे ग़ुरूर की इस्मत-दरी पे नादिम हूँ
उजाला है जो ये कौन-ओ-मकाँ में
वो और होंगे जो कार-ए-हवस पे ज़िंदा हैं
ये जो इक शाख़ है हरी थी अभी
है मुसीबत में गिरफ़्तार मुसीबत मेरी