वो और होंगे जो कार-ए-हवस पे ज़िंदा हैं
मैं उस की धूप से साया बदल के आया हूँ
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ये सारी धूल मिरी है ये सब ग़ुबार मिरा
ऐसा एक मक़ाम हो जिस में दिल जैसी वीरानी हो
रह जाएगी ये सारी कहानी यहीं धरी
मैं किसी और ही आलम का मकीं हूँ प्यारे
उस ख़ुश-अदा के आइना-ख़ाने में जाऊँगा
तिरे ग़ुरूर की इस्मत-दरी पे नादिम हूँ
ख़ुद से निकलूँ भी तो रस्ता नहीं आसान मिरा
न अपना नाम न चेहरा बदल के आया हूँ
ये सारे फूल ये पत्थर उसी से मिलते हैं
ख़्वाब आराम नहीं ख़्वाब परेशानी है
ये गुल जिस ख़ाक से लाया गया है