तमाम उम्र गुज़र जाती है कभी पल में
कभी तो एक ही लम्हा बसर नहीं होता
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यहाँ मौसम भी बदलें तो नज़ारे एक जैसे हैं
बदन के शहर में आबाद इक दरिंदा है
मोहब्बतों में बहुत रस भी है मिठास भी है
पहले हम इश्क़ किया करते थे
तवील-तर है सफ़र मुख़्तसर नहीं होता
ये दिल कहता है कोई आ रहा है
हमें हर आने वाला ज़ख़्म-ए-ताज़ा दे के जाता है
ज़िंदगी की तेज़ इतनी अब रवानी हो गई