सब सितारे दिलासा देते हैं
चाँद रातों को चीख़ता है बहुत
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फिर तिरी यादों की फुंकारों के बीच
ज़रा भी काम न आएगा मुस्कुराना क्या
जाने किस बात से दुखा है बहुत
इक अधूरी सी कहानी मैं सुनाता कैसे
साल ये कौन सा नया है मुझे
हम मुसलसल इक बयाँ देते हुए
बुझती आँखों में तिरे ख़्वाब का बोसा रक्खा
उन की आमद है गुल-फ़िशानी है
सवालों में ख़ुद भी है डूबी उदासी
आँखों का पूरा शहर ही सैलाब कर गया
चीख़ की ओर मैं खिंचा जाऊँ