अज़ाँ पे क़ैद नहीं बंदिश-ए-नमाज़ नहीं
हमारे पास तो हिजरत का भी जवाज़ नहीं
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अँधेरी रात है साया तो हो नहीं सकता
बाज़ वादे किए नहीं जाते
कहाँ मिला मैं तुझे ये सवाल ब'अद का है
कोई तोहमत हो मिरे नाम चली आती है
जाँ क़र्ज़ है सो उतारते हैं
कुछ तसावीर बोल पड़ती हैं
हँसी में टाल तो देता हूँ अक्सर
आँख झपकीं तो इतने अर्से में
आज़ार मिरे दिल का दिल-आज़ार न हो जाए
शब को इक बार खुल के रोता हूँ