अब कौन सी मता-ए-सफ़र दिल के पास है
इक रौशनी-ए-सुब्ह थी वो भी उदास है
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Habib Jalib
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(773) Peoples Rate This
सिफ़र
चाँदनी रात में
ख़ल्वत हुई है अंजुमन-आरा कभी कभी
हज़ार बार आज़मा चुका है मगर अभी आज़मा रहा है
तसमा-ए-पा
हमीं ने ज़ीस्त के हर रूप को सँवारा है
पाते हैं कुछ कमी सी तस्वीर-ए-ज़िंदगी में
हर आईना इक अक्स-ए-नौ ढूँडता है
उफ़ुक़ के उस पार कर रहा है कोई मिरा इंतिज़ार शायद
दहर में इक तिरे सिवा क्या है
थपकियाँ देते रहे ठंडी हवा के झोंके