एक सन्नाटा था आवाज़ न थी और न जवाब
दिल में इतने थे सवालात कि हम सो न सके
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ज़िंदगी यूँ तो गुज़र जाती है आराम के साथ
ख़ल्वत हुई है अंजुमन-आरा कभी कभी
सफ़र मुदाम सफ़र
यूँही कटे न रहगुज़र-ए-मुख़्तसर कहीं
करते रहे तआ'क़ुब-ए-अय्याम उम्र-भर
हयूला
मुराजअत
करो तलाश हद-ए-आसमाँ मिलने न मिले
थपकियाँ देते रहे ठंडी हवा के झोंके
उफ़ुक़ के उस पार कर रहा है कोई मिरा इंतिज़ार शायद
उसी ने साथ दिया ज़िंदगी की राहों में