आसूदगी-आमोज़ हो जब आबला-पाई
हो जाती है मंज़िल की लगन दिल में तपाँ और
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है यक दो नफ़स सैर-ए-जहान-ए-गुज़राँ और
सवाल दिल का शाम-ए-ग़म को और उदास कर गया
तरब से हो आया हूँ और यास की तह तक डूब चुका हूँ
न याद की चुभन कोई न कोई लौ मलाल की
देखते देखते तेरा चेहरा और इक चेहरा बन जाता है
क्या ख़बर मेरा सफ़र है और कितनी दूर का
मोहब्बत जादा है मंज़िल नहीं है
बे-कराँ दरिया हूँ ग़म का और तुग़्यानी में हूँ
सुब्ह चले तो ज़ौक़-ए-तलब था अर्श-निशाँ ख़ुर्शीद-शिकार