किसी सबब से अगर बोलता नहीं हूँ मैं
तो यूँ नहीं कि तुझे सोचता नहीं हूँ मैं
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कभी कभी तो ये हालत भी की मोहब्बत ने
मोहब्बत और इबादत में फ़र्क़ तो है नाँ
तुम्हें भी चाहा, ज़माने से भी वफ़ा की थी
आँख झपकी थी बस इक लम्हे को और इस के ब'अद
मैं भी बे-अंत हूँ और तू भी है गहरा सहरा
इक ख़ला, एक ला-इंतिहा और मैं
ख़ुदा! सिला दे दुआ का, मोहब्बतों के ख़ुदा
हम ने उस चेहरे को बाँधा नहीं महताब-मिसाल
रख-रखाव में कोई ख़्वार नहीं होता यार
यही चराग़ है सब कुछ कि दिल कहें जिस को
जमाल-गाह-ए-तग़ज़्ज़ुल की ताब-ओ-तब तिरी याद