उसी को हम समझ लेते हैं अपना सादगी देखो
जो अपने साथ राह-ए-शौक़ में दो गाम आता है
Gulzar
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(388) Peoples Rate This
जुनून-ए-इश्क़ की ये फ़ित्ना-सामानी नहीं जाती
जिस ने जी भर के तजल्ली को कभी देखा हो
तलाश-ए-सूरत-ए-तस्कीं न कर औहाम-हस्ती में
ना वो मसर्रत गुनाह में है न वो कशिश अब सवाब में है
ग़म-ओ-कर्ब-ओ-अलम से दूर अपनी ज़िंदगी क्यूँ हो
गुबार-ए-ज़िंदगी में लैला-ए-मक़्सूद क्या मअ'नी
मिरी ज़िंदगी का ये हाल था यही शक्ल-ए-राह-रवी रही
जो मेरी हालत पे हंस रहे हैं मुझे कुछ उन से गिला नहीं है
दुनिया वही है और वही सामान-ए-ज़िंदगी
कहाँ सदमा नहीं होते कहाँ मातम नहीं होता
बज़्म-ए-नशात-ओ-ऐश का सामाँ लिए हुए