जिसे मैं ने सुब्ह समझ लिया कहीं ये भी शाम-ए-अलम न हो

जिसे मैं ने सुब्ह समझ लिया कहीं ये भी शाम-ए-अलम न हो

मिरे सर की आप ने खाई जो कहीं ये भी झूटी क़सम न हो

वो जो मुस्कुराए हैं बे-सबब ये करम भी उन का सितम न हो

मैं ने प्यार जिस को समझ लिया कहीं ये भी मेरा भरम न हो

तू जो हस्ब-ए-वादा न आ सका तो बहाना ऐसा नया बना

कि तिरा वक़ार भी कम न हो मिरा ए'तिबार भी कम न हो

जिसे देख कर मैं ठिठक गई उसे और ग़ौर से देख लूँ

ये चमक रहा है जो आइना कहीं तेरा नक़्श-ए-क़दम न हो

मिरे मुँह से निकला ये बरमला तुझे शाद कामराँ रखे ख़ुदा

तू पयाम लाया है यार का तिरी उम्र ख़िज़्र से कम न हो

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In Hindi By Famous Poet Mumtaz Naseem. is written by Mumtaz Naseem. Complete Poem in Hindi by Mumtaz Naseem. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.