हम न वहशत के मारे मरते हैं

हम न वहशत के मारे मरते हैं

तेरी दहशत के मारे मरते हैं

मार मत बे-मुरव्वती से उन्हें

जो मुरव्वत के मारे मरते हैं

शिकवा क्या कीजे शाम-ए-ग़ुर्बत का

अपनी शामत के मारे मरते हैं

क्या रक़ीबों को मारिए वो आप

सब रक़ाबत के मारे मरते हैं

यार से दूर हैं वतन से जुदा

इस मुसीबत के मारे मरते हैं

सैकड़ों उस से हैंगे हम-आग़ोश

लाखों हसरत के मारे मरते हैं

कुछ हमारी न पूछिए साहब

हम तो ग़ैरत के मारे मरते हैं

है अजब ज़ीस्त 'मुंतज़िर' उन की

जो कि उल्फ़त के मारे मरते हैं

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In Hindi By Famous Poet Muntazir Lakhnavi. is written by Muntazir Lakhnavi. Complete Poem in Hindi by Muntazir Lakhnavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.