सिवाए गुल के वो शोख़ अँखियाँ किसी तरफ़ को नहीं हैं राग़िब
तो बर्ग-ए-नर्गिस उपर बजा है लिखूँ जो अपने सजन कूँ पतियाँ
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Habib Jalib
Gulzar
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Anwar Masood
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(419) Peoples Rate This
तेरे भाई को चाहा अब तेरी करता हूँ पा-बोसी
बुलंद आवाज़ से घड़ियाल कहता है कि ऐ ग़ाफ़िल
देखी बहार हम ने कल ज़ोर मय-कदे में
उस के रुख़्सार देख जीता हूँ
न सैर-ए-बाग़ न मिलना न मीठी बातें हैं
लब-ए-शीरीं है मिस्री यूसुफ़-ए-सानी है ये लड़का
ये दौर गुज़रा कभी न देखीं पिया की अँखियाँ ख़ुमार-मतियाँ
कमर की बात सुनते हैं ये कुछ पाई नहीं जाती
ऐ सबा कह बहार की बातें
ज़ुल्फ़ क्यूँ खोलते हो दिन को सनम
दिल का खोज न पाया हरगिज़ देखा खोल जो क़ब्रों को