सुकूँ न था मगर इतना भी इंतिशार न था

सुकूँ न था मगर इतना भी इंतिशार न था

हमारे चारों तरफ़ ख़ौफ़ का हिसार न था

तमाम उम्र ख़िज़ाँ में झुलसते गुज़री है

हमारे सर पे कभी साया-ए-बहार न था

रहा हमेशा किसी और के तसर्रुफ़ में

ख़ुद अपने दिल पे कभी अपना इख़्तियार न था

हर एक हाथ उठाए हुए था यूँ पत्थर

कि जैसे शहर में कोई गुनाहगार न था

अमीर-ए-शहर के चेहरे के दाग़-धब्बे थे

फ़सील-ए-शहर पे चस्पाँ वो इश्तिहार न था

हज़ार दफ़्तर-ए-मअ'नी खँगाल डाले 'नाज़'

मगर कहीं भी कोई हर्फ़-ए-ए'तिबार न था

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In Hindi By Famous Poet Naz Quadri. is written by Naz Quadri. Complete Poem in Hindi by Naz Quadri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.