ख़फ़ा देखा है उस को ख़्वाब में दिल सख़्त मुज़्तर है
खिला दे देखिए क्या क्या गुल-ए-ताबीर-ए-ख़्वाब अपना
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साक़ी ये पिला उस को जो हो जाम से वाक़िफ़
दरिया ओ कोह ओ दश्त ओ हवा अर्ज़ और समा
हो क्यूँ न तिरे काम में हैरान तमाशा
ज़ाहिदो रौज़ा-ए-रिज़वाँ से कहो इश्क़ अल्लाह
जो ख़ुशामद करे ख़ल्क़ उस से सदा राज़ी है
देख ले इस चमन-ए-दहर को दिल भर के 'नज़ीर'
बाग़ में लगता नहीं सहरा में घबराता है दिल
ख़याल-ए-यार सदा चश्म-ए-नम के साथ रहा
रंज-ए-दिल यूँ गया रुख़ उस का देख
उस के बाला है अब वो कान के बीच
जब उस की ज़ुल्फ़ के हल्क़े में हम असीर हुए
हूँ तेरे तसव्वुर में मिरी जाँ हमा-तन-चश्म