यादें पागल कर देती हैं
बातें पागल कर देती हैं
चेहरा होश उड़ा देता है
आँखें पागल कर देती हैं
तन्हा चलने वालों को ये
राहें पागल कर देती हैं
दिन तो ख़ैर गुज़र जाता है
रातें पागल कर देती हैं
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वो किसी भी अक्स-ए-जमाल में नहीं आएगा
गर्दिश-ए-माह-ओ-साल से आगे निकल गया हूँ मैं
ये भी तो जब्र-ए-वक़्त है तू मुझे याद भी नहीं