अबू-लहब की शादी

शब-ए-ज़फ़ाफ़-ए-अबू-लहब थी मगर ख़ुदाया वो कैसी शब थी

अबू-लहब की दुल्हन जब आई तो सर पे ईंधन गले में

साँपों के हार लाई न उस को मश्शातगी से मतलब

न माँग ग़ाज़ा न रंग रोग़न गले में साँपों

के हार उस के तो सर पे ईंधन

ख़ुदाया कैसी शब-ए-ज़फ़ाफ़-ए-अबू-लहब थी

ये देखते ही हुजूम बिफरा भड़क उठे यूँ ग़ज़ब

कि शोले के जैसे नंगे बदन पे जाबिर के ताज़ियाने

जवान लड़कों की तालियाँ थी न सेहन में शोख़

लड़कियों के थिरकते पाँव थिरक रहे थे

न नग़्मा बाक़ी न शादयाने

अबू-लहब ने ये रंग देखा लगाम थामी लगाई

महमेज़ अबू-लहब की ख़बर न आई

अबू-लहब की ख़बर जो आई तो साल-हा-साल का ज़माना

ग़ुबार बन कर बिखर चुका था

अबू-लहब अजनबी ज़मीनों के लाल ओ गौहर समेट कर

फिर वतन को लौटा हज़ार तर्रार ओ तेज़ आँखें पुराने

ग़ुर्फों से झाँक उट्ठीं हुजूम पीर ओ जवाँ का

गहरा हुजूम अपने घरों से निकला अबू-लहब के जुलूस

को देखने को लपका

अबू-लहब इक शब-ए-ज़फ़ाफ़-ए-अबू-लहब का जला

फफूला ख़याल की रेत का बगूला वो इश्क़-ए-बर्बाद

का हेयूला हुजूम में से पुकार उट्ठी अबू-लहब

तू वही है जिस की दुल्हन जब आई तो सर पे ईंधन

गले में साँपों के हार लाई

अबू-लहब एक लम्हा ठिठका लगाम थामी लगाई

महमेज़ अबू-लहब की ख़बर न आई

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In Hindi By Famous Poet Noon Meem Rashid. is written by Noon Meem Rashid. Complete Poem in Hindi by Noon Meem Rashid. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.