सूखे पत्ते उड़ा रहा होगा
सूखे पत्ते उड़ा रहा होगा
वो ख़िज़ाओं से खेलता होगा
नींद के नाम से जो डरता है
साँप ख़्वाबों में देखता होगा
बर्फ़ पिघलेगी जब पहाड़ों पर
धूप में शहर जल गया होगा
पत्थरों से है वास्ता जिस को
आइना छुप के देखता होगा
मुख़्लिसी उस को खा चुकी होगी
वो तो रिश्तों में बट चुका होगा
रंग-साज़ों के शहर का 'बेताब'
नक़्शा हर पल बदल रहा होगा
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