उस की बेचैनी बढ़ाना चाहती हूँ
सुनिए कह कर चुप लगाना चाहती हूँ
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सर्द रिश्तों की बर्फ़ पिघली है
किस हुनर के मुज़ाहिरे में हो
जान ये इंतिज़ार कैसा है
सफ़र में ही छुपी उन की ख़ुशी है
चलते चलते अक्सर रुक कर सोचा भी
वो जो पहला था अपना इश्क़ वही
एक इसी बात का था डर उस को
वो किस का है इस से क्या लेना देना
शब ढली उतर गया फिर इश्क़ का नशा मिरा
ख़्वाब जो अच्छे बुरे थे
हवाओं के मुक़ाबिल हूँ