Ghazals of Qateel Shifai (page 3)

Ghazals of Qateel Shifai (page 3)
नामक़तील शिफ़ाई
अंग्रेज़ी नामQateel Shifai
जन्म की तारीख1919
मौत की तिथि2001

कोई मक़ाम-ए-सुकूँ रास्ते में आया नहीं

किया है प्यार जिसे हम ने ज़िंदगी की तरह

खुला है झूट का बाज़ार आओ सच बोलें

ख़याल-ए-जुब्बा-ओ-दस्तार भी नहीं बाक़ी

कैसे कैसे भेद छुपे हैं प्यार भरे इक़रार के पीछे

कहूँ क्या फ़साना-ए-ग़म उसे कौन मानता है

जो बीत गई उस की ख़बर है कि नहीं है

जो भी ग़ुंचा तिरे होंटों पे खिला करता है

जो भी ग़ुंचा तिरे होंटों पे खिला करता है

झमकते झूमते मौसम का धोका खा रहा हूँ मैं

जब से असीर-ए-ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर हो गया

जब अपने ए'तिक़ाद के मेहवर से हट गया

जाँच-परख कर देख चुकी तू हर मुँह-बोले भाई को

इतने ऊँचे मर्तबे तक तुझ को पहुँचाएगा कौन

इस दौर में तौफ़ीक़-ए-अना दी गई मुझ को

हुस्न को चाँद जवानी को कँवल कहते हैं

हम को तो इंतिज़ार-ए-सहर भी क़ुबूल है

हुदूद-ए-जल्वा-ए-कौन-ओ-मकाँ में रहते हैं

हो चुका इंतिज़ार सोने दे

हिकायात-ए-लब-ओ-रुख़्सार से आगे नहीं जाते

हाथ दिया इस ने मिरे हाथ में

हर तरफ़ सतवत-ए-अर्ज़ंग दिखाई देगी

हर बे-ज़बाँ को शोला-नवा कह लिया करो

हादसे फैल गए साया-ए-मिज़्गाँ की तरह

हालात से ख़ौफ़ खा रहा हूँ

हालात की उजड़ी महफ़िल में अब कोई सुलगता साज़ नहीं

हालात की भीगी रात भी है जज़्बात का तेज़ अलाव भी

हालात के क़दमों पे क़लंदर नहीं गिरता

गुनगुनाती सी कोई रात भी आ जाती है

घनघोर घटा के आँचल को जब काली रात निचोड़ गई

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