Ghazals of Qateel Shifai (page 4)

Ghazals of Qateel Shifai (page 4)
नामक़तील शिफ़ाई
अंग्रेज़ी नामQateel Shifai
जन्म की तारीख1919
मौत की तिथि2001

गाते हुए पेड़ों की ख़ुनुक छाँव से आगे निकल आए

गाते हुए पेड़ों की ख़ुनुक छाँव से आगे निकल आए

गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं

गरेबाँ दर गरेबाँ नुक्ता-आराई भी होती है

फ़सुर्दगी का मुदावा करें तो कैसे करें

फ़राज़-ए-बे-ख़ुदी से तेरा तिश्ना-लब नहीं उतरा

इक जाम खनकता जाम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है

एहतिराम-ए-लब-ओ-रुख़्सार तक आ पहुँचे हैं

दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न था

दिल पे आए हुए इल्ज़ाम से पहचानते हैं

दिल को ग़म-ए-हयात गवारा है इन दिनों

दिल जलता है शाम सवेरे

चाँदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल

बे-ख़ुदी में पहलू-ए-इक़रार पहले तो न था

बना हूँ मैं आज तेरा मेहमाँ कोई अदू को ख़बर न कर दे

अपने होंटों पर सजाना चाहता हूँ

अपने हाथों की लकीरों में सजा ले मुझ को

अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की

अंदेशा-ए-अर्बाब-हरम साथ रहेगा

ऐ दोस्त! तिरी आँख जो नम है तो मुझे क्या

ऐ दीदा-ए-गिर्यां क्या कहिए इस प्यार-भरे अफ़्साने को

अगरचे मुझ को जुदाई तिरी गवारा नहीं

अब तो बे-दाद पे बे-दाद करेगी दुनिया

आओ कोई तफ़रीह का सामान किया जाए

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