Ghazals of Quaiser Khalid
नाम | क़ैसर ख़ालिद |
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अंग्रेज़ी नाम | Quaiser Khalid |
जन्म की तारीख | 1971 |
जन्म स्थान | Mumbai |
ये ज़मान-ओ-मकाँ का सितम भी नया
वो जो उम्र भर में कही गई सर-ए-शाम-ए-हिज्र लिखी गई
तज़्किरे फ़हम ओ ख़िरद के तो यहाँ होते हैं
मोहमल है न जानें तो, समझें तो वज़ाहत है
लबों को खोल तो कैसा भी हो जवाब तो दे
क्या अहद-ए-नौ में अपनी पहचान देखता हूँ
कोहसार तो कहीं पे समुंदर भी आएँगे
जो परिंद ख़्वाहिशों के कभी हम शिकार करते
जब अपने वा'दों से उन को मक्र ही जाना था
जाँ यूँ लिबास-ए-जिस्म को निकली उतार कर
हम ज़मीं का आतिशीं उभार देखते रहे
हम नए हैं न है ये कहानी नई
हिज्र-ओ-विसाल के नए मंज़र भी आएँगे
हर मौज-ए-हवादिस रखती है सीने में भँवर कुछ पिन्हाँ भी
हद्द-ए-फ़ासिल तो फ़क़त दर्द का सहरा निकली
गलियाँ हैं बहुत सी अभी दीवार के आगे
दरिया-ए-मोहब्बत में मौजें हैं न धारा है
डगमगाते कभी क़दमों को सँभलते देखा
अपनी यही पहचान, यही अपना पता है
आइना हूँ कि मैं पत्थर हूँ ये कब पूछे है
आए थे क्यूँ सहरा में जुगनू बन कर