तिरे सुलूक का ग़म सुब्ह-ओ-शाम क्या करते
ज़रा सी बात पे जीना हराम क्या करते
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Jaun Eliya
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न नींद आँखों में बाक़ी न इंतिज़ार रहा
ये ज़र्द चेहरा ये दर्द-ए-पैहम कोई सुनेगा तो क्या कहेगा
हँसी हँसी में हर इक ग़म छुपाने आते हैं
दिल के ज़ख़्मों को हरा करते हैं
सभी अंधेरे समेटे हुए पड़े रहना
खोने की बात और न पाने की बात है
और कुछ तेज़ चलीं अब के हवाएँ शायद
बस इक ख़ता की मुसलसल सज़ा अभी तक है
किसी का जिस्म हुआ जान-ओ-दिल किसी के हुए
शामिल तू मिरे जिस्म मैं साँसों की तरह है
दुनिया में जो समझते थे बार-ए-गिराँ मुझे