ग़मों ने घेर लिया है मुझे तो क्या ग़म है
मैं मुस्कुरा के जियूँगा तिरी ख़ुशी के लिए
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जब कभी तेरा नाम लेते हैं
कभी कभी तू मुझे याद कर तो लेती है
ग़म-ए-हयात का झगड़ा मिटा रहा है कोई
वो मोड़ जिस ने हमें अजनबी बना डाला
है तिरा इंतिज़ार गुलशन में
सभी ने लगाया है चेहरे पे चेहरा
ज़िंदगी इक इम्तिहाँ है इम्तिहाँ का डर नहीं
हम-सफ़र होता कोई तो बाँट लेते दूरियाँ
चलो बाँट लेते हैं अपनी सज़ाएँ
तेरा मेरा झगड़ा क्या जब इक आँगन की मिट्टी है