है तिरा इंतिज़ार गुलशन में
रो रही है बहार गुलशन में
आज फिर दामन-ए-उमीद मिरा
हो गया तार तार गुलशन में
पत्तियाँ कब बिखेर दें झोंके
किस को है ए'तिबार गुलशन में
किस क़दर सख़्त-जान था 'अंजुम'
जो रहा सोगवार गुलशन में
Jaun Eliya
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हम-सफ़र होता कोई तो बाँट लेते दूरियाँ
ग़म-ए-हयात का झगड़ा मिटा रहा है कोई
कभी कभी तू मुझे याद कर तो लेती है
चलो बाँट लेते हैं अपनी सज़ाएँ
तेरा मेरा झगड़ा क्या जब इक आँगन की मिट्टी है
सभी ने लगाया है चेहरे पे चेहरा
ग़मों ने घेर लिया है मुझे तो क्या ग़म है
वो मोड़ जिस ने हमें अजनबी बना डाला
ज़िंदगी इक इम्तिहाँ है इम्तिहाँ का डर नहीं