चलो बाँट लेते हैं अपनी सज़ाएँ
न तुम याद आओ न हम याद आएँ
Ahmad Faraz
Gulzar
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Jaun Eliya
Habib Jalib
Parveen Shakir
Rahat Indori
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
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ग़म-ए-हयात का झगड़ा मिटा रहा है कोई
जब कभी तेरा नाम लेते हैं
सभी ने लगाया है चेहरे पे चेहरा
है तिरा इंतिज़ार गुलशन में
तेरा मेरा झगड़ा क्या जब इक आँगन की मिट्टी है
ग़मों ने घेर लिया है मुझे तो क्या ग़म है
वो मोड़ जिस ने हमें अजनबी बना डाला
कभी कभी तू मुझे याद कर तो लेती है
हम-सफ़र होता कोई तो बाँट लेते दूरियाँ
ज़िंदगी इक इम्तिहाँ है इम्तिहाँ का डर नहीं