मैं आप अपनी मौत की तय्यारियों में हूँ
मेरे ख़िलाफ़ आप की साज़िश फ़ुज़ूल है
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मैं बदलते हुए हालात में ढल जाता हूँ
मिरे ख़ुदा किसी सूरत उसे मिला मुझ से
ये जो इज़हार करना होता है
यूँ तो नहीं कि पहले सहारे बनाए थे
रात सी नींद है महताब उतारा जाए
बिछड़ गया था कोई ख़्वाब-ए-दिल-नशीं मुझ से
क्या कहूँ कैसे इज़्तिरार में हूँ
ज़ंजीर कट के क्या गिरी आधे सफ़र के बीच
मैं तो ख़ुद बिकने को बाज़ार में आया हुआ हूँ
बिन माँगे मिल रहा हो तो ख़्वाहिश फ़ुज़ूल है
यार भी राह की दीवार समझते हैं मुझे