दीवार-ओ-दर पे कृष्ण की लीला के नक़्श हैं
मंदिर है ये तो 'कृष्ण' के दरबार की तरह
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ख़्वाब थे मेरे कुछ सुहाने से
जो सजता है कलाई पर कोई ज़ेवर हसीनों की
सारा जहान छोड़ के तुम से ही प्यार था
गुज़र जाएँगे ये दिन बेबसी के
तिरे आँगन में है जो पेड़ फूलों से लदा होगा
काटे हैं दिन हयात के लाचार की तरह
ये कह कह के हम दिल को बहला रहे हैं
कभी वो रंज के साँचे में ढाल देता है
बातें करने में तो दुनिया में सभी होश्यार थे