बुतों में कोई भलाई भी है सिवाए सितम
बुरा हो तेरा दिल-ए-ना-सज़ा किधर आया
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दिल की इक हर्फ़-ओ-हिकायात है ये भी न सही
ईद को भी वो नहीं मिलते हैं मुझ से न मिलें
ऐ हज़रत-ए-ईसा नहीं कुछ जा-ए-सुख़न अब
न ख़ून-ए-दिल है न मय का ख़ुमार आँखों में
दिल की बिसात क्या थी जो सर्फ़-ए-फ़ुग़ाँ रहा
मैं जब्हा सा हूँ उस दर-ए-आली-मक़ाम का
मुँह से तिरे सौ बार के शरमाए हुए हैं
हुजूम-ए-यास में लेने वो कब ख़बर आया
शुक्र को शिकवा-ए-जफ़ा समझे
ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ से आ गई होंटों पे जाँ तलक