जिन से मिल कर ज़िंदगी से इश्क़ हो जाए वो लोग
आप ने शायद न देखे हों मगर ऐसे भी हैं
Wasi Shah
Javed Akhtar
Gulzar
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
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और कोई दम की मेहमाँ है गुज़र जाएगी रात
आरज़ू जिन की है उन की अंजुमन तक आ गए
मेहर-ओ-माह भी लर्ज़ां हैं फ़ज़ा की बाँहों में
न किसी को फ़िक्र-ए-मंज़िल न कहीं सुराग़-ए-जादा
चमन वालों को रक़्साँ-ओ-ग़ज़ल-ख़्वाँ ले के उट्ठी है
यही नहीं कि मिरा दिल ही मेरे बस में न था
कहे तो कौन कहे सरगुज़श्त-ए-आख़िर-ए-शब
हाल में अपने मगन हो फ़िक्र-ए-आइंदा न हो
वो बे-रुख़ी कि तग़ाफ़ुल की इंतिहा कहिए
दस्त-ओ-पा हैं सब के शल इक दस्त-ए-क़ातिल के सिवा
हम लोग न उलझे हैं न उलझेंगे किसी से
फ़स्ल-ए-गुल क्या कर गई आशुफ़्ता सामानों के साथ