रात Poetry (page 6)

मकीन ही अजीब हैं

ज़हीर सिद्दीक़ी

वो अक्सर बातों बातों में अग़्यार से पूछा करते हैं

ज़हीर काश्मीरी

फ़िराक़-ए-यार के लम्हे गुज़र ही जाएँगे

ज़हीर काश्मीरी

फ़र्ज़ बरसों की इबादत का अदा हो जैसे

ज़हीर काश्मीरी

इक शख़्स रात बंद-ए-क़बा खोलता रहा

ज़हीर काश्मीरी

इक शख़्स रात बंद-ए-क़बा खोलता रहा

ज़हीर काश्मीरी

अब इश्क़ से लौ लगाएँगे हम

ज़हीर काश्मीरी

वो किस प्यार से कोसने दे रहे हैं

ज़हीर देहलवी

आँसू फ़लक की आँख से टपके तमाम रात

ज़हीर अहमद ज़हीर

सूखी ज़मीं को याद के बादल भिगो गए

ज़हीर अहमद ज़हीर

ब-ज़ाहिर यूँ तो मैं सिमटा हुआ हूँ

ज़फ़र ताबिश

रखा है बज़्म में उस ने चराग़ कर के मुझे

ज़फ़र सहबाई

रखा है बज़्म में उस ने चराग़ कर के मुझे

ज़फ़र सहबाई

गुल हैं तो आप अपनी ही ख़ुश्बू में सोचिए

ज़फ़र सहबाई

जाँ रहे नोचते हयात के दुख

ज़फ़र रबाब

बढ़े कुछ और किसी इल्तिजा से कम न हुए

ज़फ़र मुरादाबादी

घर से निकाले पाँव तो रस्ते सिमट गए

ज़फ़र कलीम

वो क़हर था कि रात का पत्थर पिघल पड़ा

ज़फ़र इक़बाल

उस को आना था कि वो मुझ को बुलाता था कहीं

ज़फ़र इक़बाल

इश्क़ उदासी के पैग़ाम तो लाता रहता है दिन रात

ज़फ़र इक़बाल

दिन चढ़े होना न होना एक सा रह जाएगा

ज़फ़र इक़बाल

वीराँ थी रात चाँद का पत्थर सियाह था

ज़फ़र इक़बाल

थकना भी लाज़मी था कुछ काम करते करते

ज़फ़र इक़बाल

तिरे रास्तों से जभी गुज़र नहीं कर रहा

ज़फ़र इक़बाल

न घाट है कोई अपना न घर हमारा हुआ

ज़फ़र इक़बाल

मौसम का हाथ है न हवा है ख़लाओं में

ज़फ़र इक़बाल

मैं ने कब दावा किया था सर-ब-सर बाक़ी हूँ मैं

ज़फ़र इक़बाल

मैं ज़र्द आग न पानी के सर्द डर में रहा

ज़फ़र इक़बाल

कुछ उस ने सोचा तो था मगर काम कर दिया था

ज़फ़र इक़बाल

कुछ नहीं समझा हूँ इतना मुख़्तसर पैग़ाम था

ज़फ़र इक़बाल

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