साथ Poetry (page 7)

ग़ौग़ा-ए-पंद गो न रहा नौहागर रहा

ज़हीर देहलवी

जो ज़ेहन ओ दिल में इकट्ठा था आस का पानी

ज़हीर अहमद ज़हीर

न कहो तुम भी कुछ न हम बोलें

ज़फ़र ताबिश

ऐ हम-सफ़र ये राह-बरी का गुमान छोड़

ज़फ़र सहबाई

ज़र्द पत्तों को हवा साथ लिए फिरती है

ज़फ़र रबाब

जाँ रहे नोचते हयात के दुख

ज़फ़र रबाब

तमाम रंग जहाँ इल्तिजा के रक्खे थे

ज़फ़र मुरादाबादी

वही सुलूक ज़माने ने मेरे साथ किया

ज़फ़र कमाली

निकाह कर नहीं सकती वो मुझ फ़क़ीर के साथ

ज़फ़र कमाली

सर्द रुतों में लोगों को गर्मी पहुँचाने वाले हाथ

ज़फ़र कलीम

फूला-फला शजर तो समर पर भी आएगा

ज़फ़र कलीम

गुमान तक में न था महव-ए-यास कर देगा

ज़फ़र कलीम

सर-बुरीदा हुआ मुक़ाबिल है

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

तुम ही बतलाओ कि उस की क़द्र क्या होगी तुम्हें

ज़फ़र इक़बाल

तन्हा रहने में भी कोई उज़्र नहीं है

ज़फ़र इक़बाल

शब-ए-विसाल तिरे दिल के साथ लग कर भी

ज़फ़र इक़बाल

मौत के साथ हुई है मिरी शादी सो 'ज़फ़र'

ज़फ़र इक़बाल

हवा के साथ जो इक बोसा भेजता हूँ कभी

ज़फ़र इक़बाल

अपनी मर्ज़ी से भी हम ने काम कर डाले हैं कुछ

ज़फ़र इक़बाल

ये ज़मीन आसमान का मुमकिन

ज़फ़र इक़बाल

ये भी मुमकिन है कि आँखें हों तमाशा ही न हो

ज़फ़र इक़बाल

वही मिरे ख़स-ओ-ख़ाशाक से निकलता है

ज़फ़र इक़बाल

सफ़र कठिन ही सही जान से गुज़रना क्या

ज़फ़र इक़बाल

रफ़्ता रफ़्ता लग चुके थे हम भी दीवारों के साथ

ज़फ़र इक़बाल

न गुमाँ रहने दिया है न यक़ीं रहने दिया

ज़फ़र इक़बाल

मुस्तरद हो गया जब तेरा क़ुबूला हुआ मैं

ज़फ़र इक़बाल

कुछ नहीं समझा हूँ इतना मुख़्तसर पैग़ाम था

ज़फ़र इक़बाल

खड़ी है शाम कि ख़्वाब-ए-सफ़र रुका हुआ है

ज़फ़र इक़बाल

जहाँ निगार-ए-सहर पैरहन उतारती है

ज़फ़र इक़बाल

इतना ठहरा हुआ माहौल बदलना पड़ जाए

ज़फ़र इक़बाल

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