शहर Poetry (page 42)

डॉक्टर फ़ानचो

रईस फ़रोग़

शहर का शहर बसा है मुझ में

रईस फ़रोग़

फूल ज़मीन पर गिरा फिर मुझे नींद आ गई

रईस फ़रोग़

कितनी ही बारिशें हों शिकायत ज़रा नहीं

रईस फ़रोग़

कह रहे थे लोग सहरा जल गया

रईस फ़रोग़

हवा ने बादल से क्या कहा है

रईस फ़रोग़

फ़ज़ा उदास है सूरज भी कुछ निढाल सा है

रईस फ़रोग़

देर तक मैं तुझे देखता भी रहा

रईस फ़रोग़

आँखें जिन को देख न पाएँ सपनों में बिखरा देना

रईस फ़रोग़

ये शहर शहर-ए-बला भी है कीना-साज़ के साथ

रईस अमरोहवी

तुम ऐ रईस! अब न अगर और मगर करो

रईस अमरोहवी

शमीम-ए-गेसू-ए-मुश्कीन-ए-यार लाई है

रईस अमरोहवी

सफ़र में कोई रुकावट नहीं गदा के लिए

रईस अमरोहवी

माना कि तू सवार है और मैं पियादा हूँ

रईस अमरोहवी

कल रात कई ख़्वाब-ए-परेशाँ नज़र आए

रईस अमरोहवी

ग़ुरूब-ए-मेहर का मातम है गुलिस्तानों में

रईस अमरोहवी

दयार-ए-शाहिद-ए-बिल्क़ीस-अदा से आया हूँ

रईस अमरोहवी

अपने को तलाश कर रहा हूँ

रईस अमरोहवी

अहरमन है न ख़ुदा है मिरा दिल

रईस अमरोहवी

वस्ल के मरहले से हिज्र की मंज़िल की तरफ़

राहुल झा

अब के बिखरा तो मैं यकजा नहीं हो पाऊँगा

राहुल झा

निकलो हिसार-ए-ज़ात से तो कुछ सुझाई दे

रहमत क़रनी

दिल की बर्बादी के आसार अभी बाक़ी हैं

राही शहाबी

पहचान कम हुई न शनासाई कम हुई

राही कुरैशी

तआरुफ़

राही मासूम रज़ा

रास्ते अपनी नज़र बदला किए

राही मासूम रज़ा

मौज-ए-हवा की ज़ंजीरें पहनेंगे धूम मचाएँगे

राही मासूम रज़ा

इस सफ़र में नींद ऐसी खो गई

राही मासूम रज़ा

तुम अपने हुस्न पे ग़ज़लें पढ़ा करो बैठे

राहील फ़ारूक़

हमें नहीं आते ये कर्तब नए ज़माने वाले

इरफ़ान सत्तार

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