शहर Poetry (page 43)

ब-ज़ोम-ए-अक़्ल ये कैसा गुनाह मैं ने किया

इरफ़ान सत्तार

अब आ भी जाओ, बहुत दिन हुए मिले हुए भी

इरफ़ान सत्तार

जाने किस शहर में आबाद है तू

इरफ़ान अहमद

सख़्त वीराँ है जहाँ तेरे बाद

इरफ़ान अहमद

कैसे बनाऊँ हाथ पर तस्वीर ख़्वाब की

इरम ज़ेहरा

हज़ार बार वो बैठा हज़ार बार उठा

इक़तिदार जावेद

इसी सबब से तो हम लोग पेश-ओ-पस में हैं

इक़बाल उमर

हर बात जो न होना थी ऐसी हुई कि बस

इक़बाल उमर

पढ़ते पढ़ते थक गए सब लोग तहरीरें मिरी

इक़बाल साजिद

मुझ पे पत्थर फेंकने वालों को तेरे शहर में

इक़बाल साजिद

ग़ुर्बत की तेज़ आग पे अक्सर पकाई भूक

इक़बाल साजिद

वो मुसलसल चुप है तेरे सामने तन्हाई में

इक़बाल साजिद

वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा

इक़बाल साजिद

उस आइने में देखना हैरत भी आएगी

इक़बाल साजिद

सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा

इक़बाल साजिद

फेंक यूँ पत्थर कि सत्ह-ए-आब भी बोझल न हो

इक़बाल साजिद

कटते ही संग-ए-लफ़्ज़ गिरानी निकल पड़े

इक़बाल साजिद

जाने क्यूँ घर में मिरे दश्त-ओ-बयाबाँ छोड़ कर

इक़बाल साजिद

इस साल शराफ़त का लिबादा नहीं पहना

इक़बाल साजिद

इक तबीअत थी सो वो भी ला-उबाली हो गई

इक़बाल साजिद

दुनिया ने ज़र के वास्ते क्या कुछ नहीं किया

इक़बाल साजिद

सरसर चली वो गर्म कि साए भी जल गए

इक़बाल मिनहास

उस को नग़्मों में समेटूँ तो बुका जाने है

इक़बाल मतीन

बगूलों की सफ़ें किरनों के लश्कर सामने आए

इक़बाल माहिर

अज्नबिय्यत का हर इक रुख़ पे निशाँ है यारो

इक़बाल माहिर

आँखों के चराग़ वारते हैं

इक़बाल ख़ुसरो क़ादरी

रवाँ हूँ मैं

इक़बाल कौसर

मिरी ख़ाक उस ने बिखेर दी सर-ए-रह ग़ुबार बना दिया

इक़बाल कौसर

करें हिजरत तो ख़ाक-ए-शहर भी जुज़-दान में रख लें

इक़बाल कौसर

अगरचे मुझ को बे-तौक़-ओ-रसन-बस्ता नहीं छोड़ा

इक़बाल कौसर

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