शहर Poetry (page 45)
ठहर के देख तू इस ख़ाक से क्या क्या निकल आया
इमरान शमशाद
तुम्हारा हुस्न है यकता चलो मैं मान लेता हूँ
इमरान साग़र
एक मुद्दत से तो ठहरे हुए पानी में हूँ मैं
इमरान हुसैन आज़ाद
मैं सच कहूँ पस-ए-दीवार झूट बोलते हैं
इमरान आमी
कोई मजनूँ कोई फ़रहाद बना फिरता है
इमरान आमी
हम-साए में शैतान भी रहता है ख़ुदा भी
इमरान आमी
बात दिल को मिरे लगी नहीं है
इमरान आमी
काँटों में ही कुछ ज़र्फ़-ए-समाअत नज़र आए
इमदाद निज़ामी
ख़िज़ाँ का ज़हर सारे शहर की रग रग में उतरा है
इम्दाद हमदानी
किसी के वास्ते क्या क्या हमें दुख झेलने होंगे
इम्दाद हमदानी
ग़ज़ब है देखने में अच्छी सूरत आ ही जाती है
इमदाद अली बहर
शत्तुल-अरब
इलियास बाबर आवान
मस्जिद-ए-अहमरीं
इलियास बाबर आवान
ग़ैर-निसाबी तारीख़
इलियास बाबर आवान
कफ़ील-ए-साअ'त-ए-सय्यार रक्खा होता है
इलियास बाबर आवान
हमारा आइना बे-कार हो गया तो फिर!
इलियास बाबर आवान
ग़मों की भीड़ में रस्ता बना के चलता हूँ
इलियास बाबर आवान
ये कमाल भी तो कम नहीं तिरा
इकराम मुजीब
क्या जाने किस की धुन में रहा दिल-फ़िगार चाँद
इकराम जनजुआ
ख़िरद को ख़ाना-ए-दिल का निगह-बाँ कर दिया हम ने
इज्तिबा रिज़वी
जी चाहता है जीना जज़्बात के मुताबिक़
इफ़्तिख़ार राग़िब
बे-घर होना बे-घर रहना सब अच्छा ठहरा
इफ़्तिख़ार क़ैसर
हम से अपने गाँव की मिट्टी के घर छीने गए
इफ़्तिख़ार क़ैसर
अपने ख़ूँ को ख़र्च किया है और कमाया शहर
इफ़्तिख़ार क़ैसर
दीवार ओ दर झुलसते रहे तेज़ धूप में
इफ़्तिख़ार नसीम
एक मुख़्तलिफ़ कहानी
इफ़्तिख़ार नसीम
सूरज नए बरस का मुझे जैसे डस गया
इफ़्तिख़ार नसीम
शाम से तन्हा खड़ा हूँ यास का पैकर हूँ मैं
इफ़्तिख़ार नसीम
है जुस्तुजू अगर इस को इधर भी आएगा
इफ़्तिख़ार नसीम
दश्त-ए-बे-सम्त में रुकना भी सफ़र ऐसा था
इफ़्तिख़ार बुख़ारी
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