शहर Poetry (page 46)

ये मोजज़ा भी किसी की दुआ का लगता है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

शिकम की आग लिए फिर रही है शहर-ब-शहर

इफ़्तिख़ार आरिफ़

एक हम ही तो नहीं हैं जो उठाते हैं सवाल

इफ़्तिख़ार आरिफ़

शिकस्त

इफ़्तिख़ार आरिफ़

शहर-आशोब

इफ़्तिख़ार आरिफ़

पस च-बायद-कर्द

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कुछ देर पहले नींद से

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बन-बास

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बैलन्स-शीट

इफ़्तिख़ार आरिफ़

आख़िरी आदमी का रजज़

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ये क़र्ज़-ए-कज-कुलही कब तलक अदा होगा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ये मो'जिज़ा भी किसी की दुआ का लगता है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ये अब खुला कि कोई भी मंज़र मिरा न था

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सब चेहरों पर एक ही रंग और सब आँखों में एक ही ख़्वाब

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मुल्क-ए-सुख़न में दर्द की दौलत को क्या हुआ

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ख़्वाब-ए-देरीना से रुख़्सत का सबब पूछते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कहाँ के नाम ओ नसब इल्म क्या फ़ज़ीलत क्या

इफ़्तिख़ार आरिफ़

हम अपने रफ़्तगाँ को याद रखना चाहते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

हरीम-ए-लफ़्ज़ में किस दर्जा बे-अदब निकला

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ग़ैरों से दाद-ए-जौर-ओ-जफ़ा ली गई तो क्या

इफ़्तिख़ार आरिफ़

अज़ाब-ए-वहशत-ए-जाँ का सिला न माँगे कोई

इफ़्तिख़ार आरिफ़

तसव्वुर

इफ़्तिख़ार आज़मी

पत्थर के जिस्म मोम के चेहरे धुआँ धुआँ

इफ़्फ़त ज़र्रीं

बे-सम्त रास्तों पे सदा ले गई मुझे

इफ़्फ़त ज़र्रीं

अजीब कर्ब-ए-मुसलसल दिल-ओ-नज़र में रहा

इफ़्फ़त ज़र्रीं

ख़ूँ में तर सब्र की चादर कहाँ ले जाओगे

इफ़्फ़त अब्बास

है ये शहर-ए-इश्क़ याँ आब-ओ-हवा कुछ और है

इफ़्फ़त अब्बास

वही न हो कि ये सब लोग साँस लेने लगें

इदरीस बाबर

वो शहर इत्तिफ़ाक़ से नहीं मिला

इदरीस बाबर

मिरे क़रीब ही महताब देख सकता था

इदरीस बाबर

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