शहर Poetry (page 44)

आँखों को इंतिशार है दिल बे-क़रार है

इक़बाल हुसैन रिज़वी इक़बाल

ये ख़ुश्क लब ये पाँव के छाले ये सर की धूल

इक़बाल हैदर

समुंदर के किनारे इक समुंदर आदमियों का

इक़बाल हैदर

जो तेरे दर्द हैं वही सब मेरे दर्द हैं

इक़बाल हैदर

वो यूँ मिला कि ब-ज़ाहिर ख़फ़ा ख़फ़ा सा लगा

इक़बाल अज़ीम

मुझे अपने ज़ब्त पे नाज़ था सर-ए-बज़्म रात ये क्या हुआ

इक़बाल अज़ीम

सब तमन्नाओं से ख़्वाबों से निकल आए हैं

इक़बाल अशहर कुरेशी

ख़्वाहिश हमारे ख़ून की लबरेज़ अब भी है

इक़बाल अशहर कुरेशी

सिलसिला ख़त्म हुआ जलने जलाने वाला

इक़बाल अशहर

अपने बदन को छोड़ के पछताओगे मियाँ

इंतिख़ाब सय्यद

दीवार फाँदने में देखोगे काम मेरा

इंशा अल्लाह ख़ान

सस्ती नज़्म

इंजील सहीफ़ा

टूटा फूटा सही एहसास-ए-अना है मुझ में

इंद्र सरूप श्रीवास्तवा

आसमानों से न उतरेगा सहीफ़ा कोई

इंद्र मोहन मेहता कैफ़

कभी मुड़ के फिर इसी राह पर न तो आए तुम न तो आए हम

इन्दिरा वर्मा

ख़ूब थी अब मगर बदल सी गई

इंद्र सराज़ी

प्रोफ़ेसर ही जब आते हों हफ़्ता-वार कॉलेज में

इनाम-उल-हक़ जावेद

कभी लौट आया मैं दश्त से तो ये शहर भी

इनाम नदीम

अपनी ही रवानी में बहता नज़र आता है

इनाम नदीम

कोई बाग़ सा सजा हुआ मिरे सामने

इनाम नदीम

दिल पर किसी पत्थर का निशाँ यूँ ही रहेगा

इनाम नदीम

अपनी ही रवानी में बहता नज़र आता है

इनाम नदीम

हर सम्त से उठता है धुआँ शहर के लोगो

इनाम हनफ़ी

हर बे-ख़ता है आज ख़ता-कार देखना

इम्तियाज़ साग़र

हैं घर की मुहाफ़िज़ मिरी दहकी हुई आँखें

इम्तियाज़ साग़र

तिरी फ़ुज़ूल बंदगी बना न दे ख़ुदा मुझे

इम्तियाज़ अहमद

कोई तो है जो आहों में असर आने नहीं देता

इमरान-उल-हक़ चौहान

हम न दुनिया के हैं न दीं के हैं

इमरान-उल-हक़ चौहान

लोग पाबंद-ए-सलासिल हैं मगर ख़ामोश हैं

इमरान शनावर

कुछ तो ऐ यार इलाज-ए-ग़म-ए-तन्हाई हो

इमरान शनावर

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