शहर Poetry (page 40)

आया उफ़ुक़ की सेज तक आ कर पलट गया

रशीद क़ैसरानी

जो हवा है सूरत-ए-बाद-ए-मुख़ालिफ़ तेज़ है

रशीद लखनवी

हुस्न क्या जिस को किसी हुस्न से ख़तरा न हुआ

रशीद कौसर फ़ारूक़ी

आँसू की तरह पोंछ के फेंका गया हूँ मैं

रशीद कौसर फ़ारूक़ी

रिश्ता-ए-दिल भी किसी दिन ख़्वाब सा हो जाएगा

रशीद कामिल

गए दिनों की मुसाफ़िरत का ब-यक-क़लम इश्तिहार लिखना

रशीद एजाज़

शो'ला शमीम-ए-ज़ुल्फ़ से आगे बढ़ा नहीं

रशीद अफ़रोज़

शेर-ओ-सुख़न का शहर नहीं ये शहर-ए-इज़्ज़त-ए-दारां है

रसा चुग़ताई

है कोई यहाँ शहर में ऐसा कि जिसे मैं

रसा चुग़ताई

घर में जी लगता नहीं और शहर के

रसा चुग़ताई

यूँ गँवाता है कोई जान-ए-अज़ीज़

रसा चुग़ताई

मुमकिन है वो दिन आए कि दुनिया मुझे समझे

रसा चुग़ताई

मैं ने सोचा था इस अजनबी शहर में ज़िंदगी चलते-फिरते गुज़र जाएगी

रसा चुग़ताई

कहाँ जाते हैं आगे शहर-ए-जाँ से

रसा चुग़ताई

दिल ने अपनी ज़बाँ का पास किया

रसा चुग़ताई

इस उजड़े शहर के आसार तक नहीं पहुँचे

रऊफ़ अमीर

हवा की चादर-ए-सद-चाक ओढ़े जा रहे हैं

रऊफ़ अमीर

ये जो चार दिन की थी ज़िंदगी इसे तेरे नाम न कर सका

राना आमिर लियाक़त

तुझ को बताएँ किस तरह, बैठे हैं कैसे हाल में

राना आमिर लियाक़त

जीत और हार का इम्कान कहाँ देखते हैं

राना आमिर लियाक़त

होता है मेहरबान कहाँ पर ख़ुदा-ए-इश्क़

राना आमिर लियाक़त

तमाम शहर गिरफ़्तार है अज़िय्यत में

रम्ज़ी असीम

हमारा ख़्वाब अगर ख़्वाब की ख़बर रक्खे

रम्ज़ी असीम

ये ज़िंदगी सज़ा के सिवा और कुछ नहीं

रम्ज़ अज़ीमाबादी

इस सदी का जब कभी ख़त्म-ए-सफ़र देखेंगे लोग

रम्ज़ अज़ीमाबादी

है समुंदर सामने प्यासे भी हैं पानी भी है

रम्ज़ अज़ीमाबादी

ज़रा ज़रा सी बात पर वो मुझ से बद-गुमाँ रहे

रमेश कँवल

किसी ने दूर से देखा कोई क़रीब आया

राम रियाज़

किसी ने दूर से देखा कोई क़रीब आया

राम रियाज़

कहीं जंगल कहीं दरबार से जा मिलता है

राम रियाज़

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